चौदह राजु लोक में असंख्य द्वीप समुद्र में, अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र में, मेरे शरीर से स्पर्श करने में आवे,
मुँह से खाने में, पीने में, बोलने में आवे, रसनेन्द्रिय से रस लेने में आवे, नाक से सूँघने में आवे,
आँखों से देखने में आवे, कानों से सुनने में आवे, दोनों हाथों से लेने-देने में आवे, काम करने में आवे,
दोनों पाँवों से चलने में आवें, शुभ विचार मन में आवे, इंद्रियों से, मन से, वचन से, काया से जितनी क्रिया करने में आवे,
भगवान की साक्षी से मेरे धारण अनुसार मुझे आगार। इनसे अधिक जग में जितने पाप हैं,
उन सब पापों के पाँच आस्रव सेवन के प्रत्याख्यान।
जाव नियमं दुविहेणं तिविहेणं, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।